हाइडेलबर्ग में जर्मनी के सिंती और रोमा संस्कृति केंद्र में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पांच लाख यूरोपीय बनजारों के कत्लेआम के दस्तावेजी सबूत हैं. 1933 की एक तस्वीर में बामबर्ग का सामान्य सा सिंती-रोमा परिवार है.
सिंती और रोमा का जनसंहार
देशभक्त जर्मन
दूसरे विश्वयुद्ध में सिंती और रोमा नौजवानों ने जर्मन सेना में सेवा की, क्योंकि वे इसे पितृभूमि की सेवा मानते थे. एमिल क्रिस्ट को सेना से निकाल दिया गया और सीधा आउशवित्स के यातना शिविर भेज दिया गया.
सिंती और रोमा का जनसंहार
नस्लवादी उन्माद
यहूदियों और बंजारों को नस्ली तौर पर निम्न कोटि का माना जाता था. कुख्यात नाजी संगठन एसएस के प्रमुख हाइनरिष हिमलर ने 1938 में सभी सिंती और रोमा लोगों को रजिस्टर करने का आदेश दिया था.
सिंती और रोमा का जनसंहार
पूरा कंट्रोल
समूचे जर्मन साम्राज्य में नस्ली कर्मचारियों ने अल्पसंख्यकों के शरीर को नापा और उनकी तस्वीरें लीं, ताकि नस्ली सिद्धांत बनाए जा सकें. सिर का मॉडल बनाने के लिए तस्वीर की तरह प्लास्टर ऑफ पैरिस का सहारा लिया गया.
सिंती और रोमा का जनसंहार
गैरईसाई बर्ताव
सिंती और रोमा लोग कैथोलिक धर्म मानते थे और चर्च में रजिस्टर्ड भी थे. कैथोलिक चर्च ने यह सूची नाजी अधिकारियों को सौंप दी. मई 1940 में दक्षिण जर्मनी के बंजारा परिवारों को अधिकृत पोलेंड भेज दिया गया.
सिंती और रोमा का जनसंहार
मुलफिंगेन के बच्चे
दक्षिण जर्मन शहर मुलफिंगेन के कैथोलिक बालगृह में 40 सिंती बच्चे रहते थे. एक शोधकर्ता ने अपने रिसर्च के लिए उनका इस्तेमाल किया. उसके बाद 39 बच्चों को आउशवित्स भेज दिया गया. 35 वहां मारे गए.
सिंती और रोमा का जनसंहार
आउशवित्स
सिंती बच्ची सेटेला श्टाइनबाख को नीदरलैंड्स के शिविर से आउशवित्स यातना शिविर भेजा जा रहा है. सेटेला को उसकी मां और भाई बहनों के साथ दूसरे 21,000 बंजारों की तरह गैस चैंबर में मार डाला गया.
सिंती और रोमा का जनसंहार
मेंगेले के शिकार
आउशवित्स के नाजी यातना शिविर में एसएस डॉक्टर जोसेफ मेंगेले बंदियों पर बर्बर प्रयोग करता था. योहान्ना और उसका भाई यहां जून 1943 में दर्दनाक मौत मरे. मेंगेले युद्ध के बाद दक्षिण अमेरिका भाग गया.
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मोर्चे के पीछे
नाजियों द्वारा मारे गए 5 लाख बंजारों बहुमत पूर्वी यूरोप के आधिकृत इलाकों में मारा गया. एसएस की टुकड़ियां मोर्चे के पीछे उन्हें पकड़ती और मारकर वहीं दफना देती, जैसे यहां दिसंबर 1941 में लाटविया के लिबाऊ में.
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छुड़ाए गए लेकिन आजाद नहीं
बैर्गेन बेल्जेन यातना शिविर जब युद्ध के अंत में आजाद कराया गया तो वहां 50,000 कंकाल दिखते बंदी मिले. कैद का असर जीवन भर रहा.