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जर्मनी में पढ़िए

जर्मनी का डिग्री सिस्टम

गुजरे सालों को याद करें तो अब विदेशी छात्रों के लिए जर्मनी में पढ़ना बहुत आसान हो गया है. अब पुरानी डिग्री की जगह ऐसी ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन डिग्रियों ने ले ली है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल है.

1999 में जर्मनी ने बोलोन्या सुधार समझौते पर दस्तखत किए. इस समझौते में यूरोपीय देशों में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था कायम करने की बात कही गई है. समझौते के मुताबिक 2020 तक इसे मानने वाले सभी देश अपने यहां बैचलर और मास्टर्स की व्यवस्था लागू कर देंगे.

इसका मतलब यह है कि यहां पढ़ने वाले छात्रों को दुनियाभर में कहीं भी काम की शुरुआत करने में दिक्कत नहीं होगी. क्योंकि उनकी डिग्रियों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आसानी से बाकी देशों की डिग्री के साथ तुलना हो सकेगी. बैचलर और मास्टर्स डिग्रियों की इस व्यवस्था का सबसे बड़ा फायदा तो जर्मनी में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों को ही होगा क्योंकि तब उनकी विदेशी डिग्री स्वदेश में भी उसी तरह काम आएगी.

डिप्लोम और मगेस्टर खत्म

बोलोन्या सुधार समझौते से पहले जर्मन यूनिवर्सिटियों के छात्रों को दो तरह की डिग्रियां मिलती थीं. एक थी डिप्लोम जो साइंस या तकनीकी क्षेत्र में दी जाती थी. दूसरी थी मगेस्टर जो ह्यूमैनिटीज और सोशल साइंस की पढ़ाई के बाद दी जाती थी. इन दोनों में से किसी एक डिग्री को पाने के लिए छात्रों को कम से कम आठ सेमेस्टर की (और अक्सर उससे भी ज्यादा) पढ़ाई करनी पड़ती थी.

अब व्यवस्था बदल गई है. अब तो जर्मन विश्वविद्यालयों में 80 फीसदी से ज्यादा कोर्स बैचलर या मास्टर्स डिग्री के तहत ही पढ़ाए जाते हैं. बैचलर डिग्री आमतौर पर छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद मिलती है. मास्टर्स के लिए दो साल की पढ़ाई और करनी पड़ती है.

दूसरी तरफ वकालत, डॉक्टरी या फार्मेसिस्ट की पढ़ाई के लिए अभी बोलोन्या सुधार लागू नहीं हुए हैं. इनके लिए अभी भी बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद राज्य स्तर पर होने वाली परीक्षा पास करनी पड़ती है. लेकिन इसमें भी बदलाव होना ही है. इन कोर्सों को भी बैचलर और मास्टर्स डिग्री व्यवस्था के तहत लाने की कोशिश की जा रही है.

एनरोलमेंट के लिए क्या चाहिए

जर्मनी में बैचलर डिग्री कोर्स के लिए अप्लाई करने के वास्ते कुछ खास शर्तें पूरी करनी होती हैं. मसलन छात्रों को जर्मन भाषा की अच्छी जानकारी होनी चाहिए. इसके अलावा उनका पढ़ाई का रिकॉर्ड भी अच्छा होना चाहिए. कुछ खास कोर्सों के लिए एडमिशन से पहले इंटर्नशिप भी कराई जाती है. कुछ कोर्स ऐसे भी हैं जिनमें दाखिला क्वॉलिफाइंग टेस्ट के आधार पर मिलता है. बैचलर डिग्री के बाद छात्र जर्मनी के राज्य स्तरीय लॉ या मेडिकल एग्जाम भी दे सकते हैं.

मास्टर्स डिग्री के लिए तो व्यवस्था लगभग वैसी ही है जैसी भारत में है. यानी इसके लिए आपके पास बैचलर डिग्री होनी चाहिए. जिस सब्जेक्ट में आपको मास्टर्स करना है, जरूरी नहीं कि बैचलर्स में वही हो. लेकिन उससे मिलता जुलता सब्जेक्ट होना जरूरी है. पीएचडी के लिए मास्टर्स के साथ साथ पढ़ाई में डिस्टिंक्शन की उम्मीद की जाती है.

रिपोर्टः क्लाउडिया उन्सेल्ड/गाबी रोएशर/विवेक कुमार

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी